वीडियो जानकारी:<br />शब्दयोग सत्संग, पार से उपहार शिविर<br />१४ सितंबर, २०१९<br />अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा<br /><br />प्रसंग:<br />अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्।<br />परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम् ॥9.11॥<br /><br />भावार्थ : मेरे परमभाव को न जानने वाले मूढ़ लोग मनुष्य का शरीर धारण करने वाले मुझ संपूर्ण भूतों के महान् ईश्वर को तुच्छ समझते हैं अर्थात् अपनी योग माया से संसार के उद्धार के लिए मनुष्य रूप में विचरते हुए मुझ परमेश्वर को साधारण मनुष्य मानते हैं॥11॥<br /><br />(भगवद गीता, अध्याय ९, श्लोक ११ )<br /><br />मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः ।<br />राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः ॥9.12॥<br />भावार्थ : वे व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ ज्ञान वाले विक्षिप्तचित्त अज्ञानीजन राक्षसी, आसुरी और मोहिनी प्रकृति को ही धारण किए रहते हैं॥12॥<br /><br />(भगवद गीता, अध्याय ९, श्लोक १२ )<br /><br />महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः ।<br />भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्यम् ॥9.13॥<br />भावार्थ : परंतु हे कुन्तीपुत्र! दैवी प्रकृति के आश्रित महात्माजन मुझको सब भूतों का सनातन कारण और नाशरहित अक्षरस्वरूप जानकर अनन्य मन से युक्त होकर निरंतर भजते हैं॥13॥<br />(भगवद गीता, अध्याय ९, श्लोक १३)<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते